
देश में हर घर तक स्वच्छ पेयजल पहुंचाने की दिशा में जल जीवन मिशन ने ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल की है। 22 अक्टूबर तक इस मिशन के तहत 15.72 करोड़ ग्रामीण परिवारों को नल से जल की सुविधा मिल चुकी है, जो ग्रामीण भारत के 81 प्रतिशत से अधिक घरों को कवर करता है। गौरतलब है कि पीएम मोदी ने 15 अगस्त 2019 को इस महत्वाकांक्षी योजना की शुरुआत की थी। उस समय केवल 3.23 करोड़ ग्रामीण घरों को नल से जल मिल रहा था, जबकि अब 12.48 करोड़ अतिरिक्त घर इस सुविधा से जुड़े हैं। 2.08 लाख करोड़ रुपए की केंद्रीय सहायता से चल रहे इस मिशन ने ग्रामीण बुनियादी ढांचे में सबसे तेज विस्तार का रिकॉर्ड बनाया है।
इस योजना ने न केवल पेयजल की उपलब्धता सुनिश्चित की है बल्कि ग्रामीण महिलाओं का सदियों पुराना बोझ भी कम किया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, इस मिशन से रोज लगभग 5.5 करोड़ घंटे की बचत होती है, जिसमें से 75 प्रतिशत समय महिलाओं का है। WHO का अनुमान है कि यदि हर व्यक्ति को सुरक्षित पेयजल मिले, तो हर साल करीब 4 लाख दस्त से होने वाली मौतें रोकी जा सकती हैं और 14 मिलियन “डिसेबिलिटी एडजस्टेड लाइफ इयर्स (DALYs)” बचाए जा सकते हैं। इससे स्वास्थ्य व्यय में लगभग 8.2 लाख करोड़ रुपए की बचत संभव है। नोबेल पुरस्कार विजेता प्रो. माइकल क्रेमर के शोध के मुताबिक, सुरक्षित जल उपलब्धता से पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु दर में लगभग 30 प्रतिशत तक कमी आ सकती है। एसबीआई रिसर्च की रिपोर्ट के अनुसार, पानी लाने वाले घरों में 8.3 प्रतिशत की कमी आई है, जिससे 9 करोड़ महिलाएं इस कार्य से मुक्त हुईं और कृषि व अन्य क्षेत्रों में उनकी भागीदारी 7.4 प्रतिशत बढ़ी है।
मिशन के तहत अब तक 192 जिलों, 1,912 ब्लॉकों, 1,25,185 ग्राम पंचायतों और 2,66,273 गांवों में हर घर नल से जल पहुंचाया जा चुका है। इनमें से 116 जिलों, 1,019 ब्लॉकों, 88,875 पंचायतों और 1,74,348 गांवों को ग्राम सभाओं द्वारा प्रमाणित किया गया है। गोवा, हरियाणा, गुजरात और अरुणाचल प्रदेश सहित 11 राज्य और केंद्र शासित प्रदेश 100 प्रतिशत नल जल कवरेज प्राप्त कर चुके हैं। इसके अलावा देशभर के 9,23,297 स्कूलों और 9,66,876 आंगनवाड़ी केंद्रों में भी अब नल से जल उपलब्ध है।
गुणवत्ता की निगरानी के लिए देशभर के 2,843 प्रयोगशालाओं में 2025-26 में 38.78 लाख जल नमूनों की जांच की जा रही है। 4,49,961 गांवों में 24.80 लाख महिलाओं को फील्ड टेस्टिंग किट (FTK) के उपयोग के लिए प्रशिक्षित किया गया है ताकि वे पानी की गुणवत्ता की स्थानीय स्तर पर जांच कर सकें। मिशन के तहत स्थायित्व और पर्यावरण संरक्षण पर भी ध्यान दिया जा रहा है, जिसमें ग्रे वाटर मैनेजमेंट, जल संरक्षण और वर्षा जल संचयन जैसी पहलें शामिल हैं। समुदाय की भागीदारी बढ़ाने के लिए सूचना, शिक्षा और संचार गतिविधियों को भी बढ़ावा दिया गया है।
डिजिटल नवाचार के तहत, पेयजल एवं स्वच्छता विभाग एक डिजिटल रजिस्ट्री तैयार कर रहा है, जिसमें प्रत्येक जलापूर्ति योजना को एक यूनिक RPWSS आईडी दी जाएगी। यह प्लेटफॉर्म जीआईएस मैपिंग और पीएम गति शक्ति से जुड़ा है, जिससे पंचायतों और जल एवं स्वच्छता समितियों को रियल-टाइम जानकारी और विश्लेषण उपलब्ध होगा। सभी राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों को नवंबर 2025 तक RPWSS आईडी निर्माण पूरा करने का लक्ष्य दिया गया है।
देशभर में जल जीवन मिशन की सफलता की कई मिसालें सामने आई हैं। महाराष्ट्र के मपान गांव में महिलाओं के स्वयं सहायता समूह ने नल जल योजना का संचालन संभालकर 100 प्रतिशत बिल वसूली सुनिश्चित की और 1.70 लाख रुपए की आय अर्जित की है। नगालैंड के वोक्हा में स्थानीय समुदायों ने जल स्रोतों की सुरक्षा के लिए रिचार्ज पिट और पौधारोपण किया। असम के बोरबोरी गांव में नल जल और स्वच्छता अभियान के चलते 2022-23 में 27 जलजनित बीमारियों के मामलों से घटकर अब शून्य मामले रह गए हैं। राजस्थान के बोथरा गांव में चेक डैम और ट्रेंच निर्माण से जल स्तर में 70 फीट की वृद्धि हुई। पश्चिम बंगाल में ‘जल मित्र’ ऐप ने निगरानी व्यवस्था को डिजिटल बना दिया है, जिससे अब तक 13.70 करोड़ सामुदायिक गतिविधियों की ट्रैकिंग हो चुकी है और 4,522 “जल बचाओ समितियों” को सहायता मिली है। यह मिशन न केवल स्वच्छ पेयजल उपलब्ध करा रहा है बल्कि ग्रामीण भारत में स्वास्थ्य, शिक्षा, महिला सशक्तिकरण और आर्थिक प्रगति का नया अध्याय भी लिख रहा है
