प्रधानमंत्री के जन्मदिन पर विशेष : कौन हैं पीएम मोदी के जीवन के सबसे बड़े प्रेरणा-स्रोत

Author : Aashika Singh

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भारत को नई दिशा देने वाले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का आज जन्मदिन है। ऐसे अवसर पर उनके जीवन के उस सबसे बड़े प्रेरणा-स्रोत की चर्चा करना अनिवार्य हो जाता है, जिसने न सिर्फ़ उनके विचारों को गढ़ा बल्कि उन्हें संन्यास के मार्ग से हटाकर सेवा और कर्तव्य के मार्ग पर आगे बढ़ने की प्रेरणा दी।

देश को दुनिया की पांच कमजोर अर्थव्यवस्थाओं (Fragile Economy) की श्रेणी से निकालकर दुनिया की 5 सबसे मज़बूत अर्थव्यवस्थाओं में शामिल करने वाले पीएम मोदी कभी ‘साधु’ बनकर जीवन बिताना चाहते थे, परंतु नियति ने उन्हें समाज और राष्ट्र की सेवा के लिए चुना था, और इस मोड़ पर निर्णायक भूमिका निभाई स्वामी विवेकानंद के विचारों और रामकृष्ण मिशन के संतों ने।

यह संयोग नहीं है कि प्रधानमंत्री का नाम भी ‘नरेन्द्र’ रखा गया, उनका नाम स्वामी विवेकानंद के वास्तविक नाम ‘नरेन्द्रनाथ दत्ता’ पर ही रखा गया था। बचपन से ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी स्वामी विवेकानंद को अपना आदर्श मानते रहे हैं। उनके जीवन का हर महत्वपूर्ण पड़ाव कहीं न कहीं विवेकानंद के उस संदेश से जुड़ता रहा ‘संन्यास त्याग नहीं, सेवा ही सच्ची साधना है।’

1968 में जब युवा नरेन्द्र मोदी घर छोड़कर निकले, तो उनके मन में संन्यास लेने की तीव्र इच्छा थी। सबसे पहले वे कोलकाता पहुंचे और गंगा किनारे स्थित बेलूर मठ पहुँचे जो स्वामी विवेकानंद की तपोभूमि थी।

उस समय बेलूर मठ की कमान स्वामी वीरेश्वरानंद के हाथों में थी और उनके पास ही मंत्र दीक्षा देने का अधिकार था। युवा नरेन्द्र जब वीरेश्वरानंद से मिले तो उन्होंने उन्हें समझाया कि संन्यास का मार्ग न अपनाकर अपने कर्तव्य पथ व सेवा पथ ही चलते रहें, क्योंकि आगे उन्हें बड़े दायित्वों का निर्वहन करना है।

बेलूर मठ का यह अनुभव मोदी के जीवन का निर्णायक मोड़ बना। विवेकानंद के आदर्शों से जुड़े इस स्थल ने उनके भीतर गहरी छाप छोड़ी और आध्यात्मिक दृष्टि दी, जिसने आगे चलकर उनके राजनीतिक जीवन की नींव मज़बूत की।

बेलूर मठ से निकलकर युवा नरेन्द्र ने कामाख्या, अल्मोड़ा और केदारनाथ जैसे धार्मिक स्थलों की यात्रा की, जहां उन्होंने ध्यान और साधना की। गुजरात लौटने पर राजकोट के रामकृष्ण आश्रम में स्वामी आत्मस्थानंद से मिले, जिन्होंने उन्हें स्पष्ट कहा कि उनका मार्ग संन्यास नहीं बल्कि समाजसेवा है। वही सलाह आगे चलकर उनके सार्वजनिक जीवन की आधारशिला बनी।

प्रधानमंत्री स्वयं कई बार कह चुके हैं कि उन्होंने बचपन से ही विवेकानंद को अपने जीवन का आदर्श माना। विवेकानंद के विचारों ने उनमें राष्ट्रसेवा, युवा-शक्ति और आत्मनिर्भरता की लौ जलाई। यही वजह है कि मोदी के भाषणों में अकसर विवेकानंद के उद्धरण सुनाई देते हैं और उनकी नीतियों में युवाओं व राष्ट्रनिर्माण पर विशेष ध्यान दिखाई देता है।

दिलचस्प है कि प्रधानमंत्री के इस जन्मदिन से ठीक पहले पश्चिम बंगाल बीजेपी ने युवाओं को जोड़ने के लिए “नरेन्द्र कप” फुटबॉल टूर्नामेंट की शुरुआत की। इस कप का नाम स्वामी विवेकानंद के नाम पर रखा गया है और प्रधानमंत्री मोदी के नाम से भी इसका सीधा संबंध है। पार्टी का कहना है कि यह आयोजन युवाओं को खेल, ऊर्जा और राष्ट्रभक्ति से जोड़ने का एक प्रतीक है।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का बंगाल कनेक्शन सिर्फ नाम या प्रेरणा तक सीमित नहीं रहा। वे बेलूर मठ जाकर ध्यान लगा चुके हैं, रामकृष्ण मिशन के संतों से मार्गदर्शन ले चुके हैं और हर बार यह कहा है कि विवेकानंद का दर्शन भारत को “विश्वगुरु” बनाने की दिशा दिखाता है।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कई बार कन्याकुमारी के उस स्थान पर भी ध्यान लगा चुके हैं जहां पर स्वामी विवेकानंद ने ध्यान लगाया था।

प्रधानमंत्री के शब्दों में-

​•​“यदि आज भारत को अपनी पहचान बनानी है, तो विवेकानंद के विचारों को आत्मसात करना ही होगा।”
​•​“स्वामी विवेकानंद ने जिस युवा भारत का सपना देखा था, वही आज हमें आगे बढ़ा रहा है।”
​•​“सेवा ही सबसे बड़ा धर्म है, और वही मेरे जीवन का मार्गदर्शन है।”

वहीं, स्वामी विवेकानंद के ऐतिहासिक शिकागो भाषण का वह अमर संदेश आज भी प्रधानमंत्री मोदी अक्सर उद्धृत करते हैं-

“मैं ऐसे धर्म का अनुयायी होने पर गर्व करता हूं, जिसने संसार को सहिष्णुता और सार्वभौमिक स्वीकृति की शिक्षा दी है, सभी धर्मों को सत्य मानने की शिक्षा दी है।”

प्रधानमंत्री के जन्मदिन पर यह कहना गलत नहीं होगा कि उनके जीवन की धड़कन में बंगाल की आध्यात्मिक परंपरा और विवेकानंद की शिक्षाएं लगातार बहती रही हैं।

(लेखिका आशिका सिंह का पत्रकारिता जगत में 18 वर्षों का अनुभव है, वर्तमान में वे प्रसार भारती न्यूज सर्विस के साथ जुड़ी हैं