Author : Amit Sharma

नेताओं को मिलने वाले उपहार अक्सर या तो निजी संग्रह का हिस्सा बन जाते हैं या फिर संग्रहालयों की शोभा बढ़ाते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस परंपरा को बदलते हुए एक नई मिसाल प्रस्तुत की है। उन्होंने यह सिद्ध किया कि संवैधानिक पद पर रहते हुए मिले उपहार निजी भंडार की वस्तु नहीं बल्कि समाज के उपयोग के लिए संसाधन हो सकते हैं। यही कारण है कि प्रधानमंत्री को प्राप्त हजारों उपहारों की नीलामी कराई जा रही है और उससे मिलने वाला धन नमामि गंगे परियोजना के लिए समर्पित किया जा रहा है। यह कदम केवल प्रशासनिक प्रक्रिया नहीं बल्कि राजनीति में नैतिकता और लोकहित की सोच का प्रतीक बन चुका है।
एक परंपरा का बदलाव
भारत ही नहीं दुनिया के तमाम लोकतांत्रिक देशों में नेताओं या बड़े बदों पर आसीन डिग्निटरीज को उपहार मिलते रहना स्वाभाविक परंपरा है। प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति को मिलने वाले उपहार उस पद की गरिमा और अंतरराष्ट्रीय या घरेलू संबंधों का प्रतीक माने जाते हैं। पहले प्रचलन यह रहा है कि ये उपहार लंबे समय तक सरकारी खजानों या संग्रहालयों में पड़े रहते थे और जनता से उनका जुड़ाव केवल देखने भर तक सीमित रहता था।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस परंपरा में बदलाव किया। उन्होंने प्रधानमंत्री पद को प्राप्त उपहारों को निजी महत्व न देकर उन्हें सार्वजनिक हित से जोड़ा। इससे एक बड़ा संदेश गया कि सत्ता से जुड़े प्रतीकों का वेलफेयर में कैसे प्रयोग किया जा सकता है।
प्रधानमंत्री के साथ जनता का जुड़ाव
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को मिले उपहारों की नीलामी की प्रक्रिया पहली बार 2019 में शुरू हुई थी तब से लेकर अब तक यह नीलामी कई चरणों में आयोजित हो चुकी है। संस्कृति मंत्रालय इस पूरी प्रक्रिया का संचालन करता है। ताज़ा 17 नीलामी सितंबर 2025 में शुरू की गई है। इसमें करीब 1300 उपहारों को शामिल किया गया है। इसमें चित्रकला, मूर्तियां, शॉल, तलवारें, पारंपरिक शिल्प और कई तरह की वस्तुएं शामिल हैं जो प्रधानमंत्री को देश-विदेश से प्राप्त हुई थीं। सभी आय सीधे नमामि गंगे फंड में दी जाएगी।
यह पारदर्शी प्रक्रिया न केवल उपहारों को मूल्यवान बनाती है बल्कि जनता को भी इन वस्तुओं को खरीदने और प्रधानमंत्री के साथ जुड़ाव का अनुभव करने का अवसर देती है।
गंगा के प्रति भारतीय समाज की आस्था
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उपहारों की नीलामी से होने वाली आय को नमामि गंगे मिशन के लिए समर्पित किया है। यह महज एक प्रशासनिक निर्णय नहीं बल्कि गंगा के प्रति भारतीय समाज की आस्था और पर्यावरणीय ज़िम्मेदारी को रेखांकित करता है।
नमामि गंगे मिशन की शुरुआत 2014 में हुई थी और इसका लक्ष्य गंगा नदी की सफाई, प्रदूषण नियंत्रण और तटवर्ती क्षेत्रों का संरक्षण है। इस मिशन के अंतर्गत सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट, घाटों का पुनर्निर्माण, ग्रामीण स्वच्छता और जैव विविधता संरक्षण जैसे कई काम हो रहे हैं।
उपहारों की नीलामी से जुटी धनराशि इस मिशन में अतिरिक्त संसाधन जोड़ती है। इससे यह भी संदेश जाता है कि गंगा केवल एक नदी नहीं बल्कि भारतीय संस्कृति और जीवन का आधार है और उसकी रक्षा में हर संभव योगदान दिया जाना चाहिए।
राजनीति में लोकहित और नैतिकता का संदेश
प्रधानमंत्री की इस पहल का सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह है कि उन्होंने राजनीति में त्याग और लोकहित को सर्वोच्च प्राथमिकता दी। सामान्यतः सत्ता से जुड़ी वस्तुएं नेता की निजी पहचान का हिस्सा बन जाती हैं लेकिन पीएम मोदी ने उन्हें जनता के लिए समर्पित कर राजनीति में एक नई परंपरा स्थापित की।
यह कदम लोकतांत्रिक आचरण की उस कसौटी को मजबूत करता है, जिसमें सत्ता का अर्थ व्यक्तिगत संपत्ति नहीं बल्कि सार्वजनिक उत्तरदायित्व है। उपहारों की नीलामी से जनता को यह संदेश भी मिलता है कि सत्ता से जुड़ी वस्तुओं का मूल्य तभी है जब वे समाज के किसी बड़े उद्देश्य को पूरा करें।
पीएम के लिए लोकहित सबसे ऊपर
यदि हम वैश्विक परंपराओं को देखें तो कई देशों में राष्ट्राध्यक्षों को मिलने वाले उपहार सरकारी खजानों या संग्रहालयों में रख दिए जाते हैं। उदाहरण के लिए, अमेरिका में राष्ट्रपति को मिले सभी आधिकारिक उपहार नेशनल आर्काइव्स का हिस्सा बनते हैं। ब्रिटेन में शाही परिवार को मिले उपहार अक्सर क्राउन कलेक्शन में जाते हैं लेकिन उनमें से अधिकांश कभी भी लोकहित के कार्यों में सीधे इस्तेमाल नहीं होते।
इस दृष्टि से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कदम एक अलग और अनूठा प्रयोग है। उन्होंने उपहारों को न केवल जनता के लिए उपलब्ध कराया बल्कि उनसे प्राप्त धन को सीधे पर्यावरण और संस्कृति की रक्षा जैसे महत्वपूर्ण उद्देश्य से जोड़ दिया।
जनता की भागीदारी और पारदर्शिता
नीलामी प्रक्रिया ने जनता की भागीदारी को भी बढ़ाया है। कोई भी नागरिक ऑनलाइन पोर्टल pmmementos.gov.in के माध्यम से बोली लगाकर इन वस्तुओं को खरीद सकता है। इससे प्रक्रिया पूरी तरह पारदर्शी और लोकतांत्रिक बनी रहती है। नीलामी से जुड़ी सभी जानकारी संस्कृति मंत्रालय की वेबसाइट पर उपलब्ध कराई जाती है।
यह पहल नागरिकों को यह अनुभव कराती है कि वे केवल दर्शक नहीं बल्कि लोकतांत्रिक प्रक्रिया के सक्रिय हिस्सेदार हैं। उपहार खरीदने वाला व्यक्ति न केवल एक स्मृति प्राप्त करता है बल्कि गंगा के पुनर्जीवन में भी अप्रत्यक्ष रूप से योगदान देता है।
राजनीतिक आचरण की नई परिभाषा
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा उपहारों की नीलामी केवल प्रशासनिक प्रक्रिया भर नहीं है। यह लोकतांत्रिक राजनीति के नैतिक और प्रतीकात्मक पहलुओं को मजबूत करने वाला कदम है। सत्ता से जुड़े उपहारों को निजी खजाने का हिस्सा न बनाकर उन्हें जनता और पर्यावरण के हित में समर्पित करना राजनीति में एक नई सोच को जन्म देता है।
यह पहल हमें यह संदेश देती है कि वास्तविक नेतृत्व वही है जो सत्ता के प्रतीकों को भी जनहित के संसाधन में बदल दे। लोकतंत्र में लोकहित सर्वोपरि है और मोदी की यह पहल उसी सिद्धांत का जीवंत उदाहरण है इसलिए इसे न केवल प्रशासनिक निर्णय बल्कि राजनीतिक आचरण की नई परिभाषा कहा जा सकता है।
-(वरिष्ठ पत्रकार अमित शर्मा की राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय, राजनीतिक, आध्यात्मिक और सामाजिक मुद्दों पर गहरी पकड़ है। वर्तमान में वे प्रसार भारती न्यूज सर्विस के साथ जुड़े हैं।)
