
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज शुक्रवार को नई दिल्ली स्थित विज्ञान भवन में ज्ञान भारतम् अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन को संबोधित किया। उन्होंने कहा कि हजारों वर्षों से चला आ रहा भारत का चिंतन और मनन, आचार्यों और विद्वानों की शिक्षा, हमारी वैज्ञानिक धरोहर और ज्ञान परंपराएं अब ज्ञान भारतम् मिशन के माध्यम से डिजिटलाइज की जाएंगी।
प्रधानमंत्री ने कहा कि विज्ञान भवन आज भारत के स्वर्णिम अतीत के पुनर्जागरण का साक्षी बन रहा है। कुछ ही दिन पहले उन्होंने इस मिशन की घोषणा की थी और अब इतने कम समय में इसका अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन और पोर्टल लॉन्च किया गया है। उन्होंने स्पष्ट किया कि यह केवल सरकारी या अकादमिक आयोजन नहीं है, बल्कि यह भारत की संस्कृति, साहित्य और चेतना का उद्घोष बनने जा रहा है।
पीएम मोदी ने बताया कि भारत की ज्ञान परंपरा बेहद समृद्ध है क्योंकि यह चार स्तंभों-संरक्षण, नवाचार, संवर्धन और अनुकूलन पर आधारित है। भारत के पास दुनिया का सबसे बड़ा पांडुलिपि संग्रह है, जिसमें करीब 1 करोड़ पांडुलिपियां शामिल हैं। उन्होंने कहा कि इतिहास की कठिन परिस्थितियों में लाखों पांडुलिपियां नष्ट हो गईं, लेकिन जो बची हैं वे इस बात की गवाही देती हैं कि हमारे पूर्वज ज्ञान और विज्ञान के प्रति कितने समर्पित थे।
प्रधानमंत्री ने आगे कहा कि भारत स्वयं में एक जीवंत प्रवाह है, जो विचारों, आदर्शों और मूल्यों से निर्मित हुआ है। प्राचीन पांडुलिपियों में भारत की निरंतरता और विविधता में एकता का संदेश मिलता है। उन्होंने बताया कि ये पांडुलिपियां मानवता की सामूहिक विकास यात्रा का प्रतीक भी हैं। पीएम मोदी ने कहा कि भारत से मिली पांडुलिपियों में दर्शन, विज्ञान, चिकित्सा, कला, खगोल विज्ञान और तत्वमीमांसा सहित अनेक क्षेत्रों का ज्ञान है। उन्होंने याद दिलाया कि गणित से लेकर बाइनरी-आधारित कंप्यूटर विज्ञान तक, आधुनिक वैज्ञानिक प्रगति का मूल आधार शून्य की अवधारणा में निहित है, जो भारत की देन है।