विदेशी संसदों में गूंजती भारत की आवाज

दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम इतिहास के पन्नों में एक और नया अध्याय लिख गया है। हाल ही में अफ्रीका और कैरेबियाई देशों के सफल दौरे के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने नामीबिया, त्रिनिदाद एंड टोबैगो और घाना की संसद में अपने विचार रखे। इन तीनों भाषणों के साथ ही उन्होंने एक नया कीर्तिमान रच दिया। वह अब तक 17 विदेशी संसदों को संबोधित करने वाले पहले भारतीय प्रधानमंत्री बन गए हैं। यह वही संख्या है जो पिछले 70 वर्षों में भारत के सभी कांग्रेसी प्रधानमंत्रियों ने मिलकर हासिल की थी। प्रधानमंत्री मोदी ने मात्र एक दशक में उस मुकाम को छू लिया है जिसे हासिल करने में देश को सात दशक लगे।

इतिहास नहीं, भविष्य का घोषणापत्र

प्रधानमंत्री मोदी द्वारा 17 विदेशी संसदों को संबोधित करने का यह आंकड़ा इतिहास की दृष्टि से भले ही एक रिकॉर्ड हो, पर असल मायनों में यह भविष्य का घोषणा पत्र है। जिसमें भारत के आत्मविश्वास, गरिमा और कूटनीतिक दृष्टिकोण की झलक मिलती है। जब भारत के प्रधानमंत्री किसी विदेशी संसद के मंच से बोलते हैं तो वह अकेले नहीं होते उनके पीछे खड़ा होता है 140 करोड़ भारतीयों का सपना, इतिहास, संस्कृति और संकल्प। यही कारण है कि उनके भाषण भारत की आत्मा की अनुगूंज होते हैं। 

हर भाषण किसी राजनयिक दस्तावेज से कम नहीं

यह कीर्तिमान निश्चित ही भारत की बदली हुई वैश्विक भूमिका, मजबूत कूटनीति और आत्मविश्वास से भरे नेतृत्व का परिचायक है। यह दर्शाता है कि भारत अब वैश्विक मंच पर केवल एक सहभागी नहीं बल्कि निर्णायक भूमिका में है। प्रधानमंत्री मोदी का हर भाषण किसी राजनयिक दस्तावेज से कम नहीं रहा। चाहे वह अमेरिकी कांग्रेस हो या घाना की संसद, हर मंच पर उन्होंने भारत की लोकतांत्रिक परंपराओं, विविधता, विकास और वैश्विक सहयोग की अद्वितीय कहानी सुनाई।

घाना की धरती पर भारत की प्रतिष्ठा

प्रधानमंत्री मोदी जब घाना पहुंचे तो वहां की संसद में उनका जिस तरीके से स्वागत हुआ वह भारत-घाना के संबंधों का नया अध्याय लिखे जाने का सीधा संकेत है। घाना ने उन्हें अपने सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘Order of the Star of Ghana’ से नवाजा। भारत के किसी भी प्रधानमंत्री को तीन दशकों में ऐसा सम्मान नहीं मिला था। अपने भाषण में पीएम मोदी ने अफ्रीका और भारत के साझा ऐतिहासिक संघर्षों को याद करते हुए कहा, ‘हमने उपनिवेशवाद के खिलाफ लड़ाई लड़ी है और अब हम वैश्विक न्याय के लिए एक साथ खड़े हैं।’ उनका यह संदेश केवल घाना के सांसदों के लिए नहीं था बल्कि सम्पूर्ण ग्लोबल साउथ के लिए एक बुलंद आवाज थी कि भारत उनके साथ मजबूती से खड़ा है।

त्रिनिदाद एंड टोबैगो में विरासत और भविष्य का संगम

त्रिनिदाद एंड टोबैगो की संसद में पीएम मोदी का भाषण मानो प्रवासी भारतीयों की आत्मा को छू गया। उन्होंने 1845 में भारत से गए पहले श्रमिकों की यात्रा को स्मरण करते हुए कहा, ‘यह केवल लोगों की नहीं बल्कि आत्माओं की यात्रा थी जो अब संस्कृतियों की साझेदारी में बदल गई है।’ त्रिनिदाद में उन्होंने अयोध्या राम मंदिर के लिए भेजे गए पवित्र जल और शिलाओं की श्रद्धा का स्मरण करते हुए प्रवासी समाज को धन्यवाद दिया। यह संबंध केवल कूटनीतिक नहीं, भावनात्मक भी था।

विदेशी संसद में भी ‘मोदी, मोदी’ की गूंज

नामीबिया की संसद में प्रधानमंत्री मोदी का स्वागत ऐतिहासिक था। जैसे ही वे मंच पर पहुंचे, पूरे सदन में तालियों की गड़गड़ाहट और ‘मोदी, मोदी’ के नारों से आसमान गूंज उठा। यह दृश्य बताता है कि भारत की विदेश नीति अब केवल दस्तावेजों तक सीमित नहीं है, यह दिलों तक पहुंच चुकी है। अपने भाषण में उन्होंने भारत की डिजिटल शक्ति, हेल्थकेयर साझेदारी और जलवायु परिवर्तन पर सहयोग की प्रतिबद्धता जताई। उन्होंने नामीबिया को बताया कि भारत उसकी ‘क्षमताओं का साझेदार’ बनना चाहता है, उसका ‘प्रभुत्व नहीं’।

एक दशक में 70 वर्षों का इतिहास

अगर हम ऐतिहासिक दृष्टिकोण से देखें तो मोदी की यह उपलब्धि और भी चौंकाने वाली प्रतीत होती है। स्वतंत्र भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने कुल 3 संसदों को संबोधित किया। इंदिरा गांधी ने 4, राजीव गांधी ने 2, मनमोहन सिंह ने 7 और पीवी नरसिम्हा राव ने 1 संसद को संबोधित किया। कुल मिलाकर, कांग्रेस प्रधानमंत्रियों ने 70 वर्षों में 17 बार विदेशी संसद को संबोधित किया। वहीं पीएम मोदी ने 2014 से अब तक, यानी मात्र 11 वर्षों में ही इन 17 संसदों को संबोधित कर रिकॉर्ड की बराबरी कर ली। यह केवल संख्यात्मक आंकड़ा नहीं बल्कि यह भारत की नई विदेश नीति का प्रतिबिंब है जो अब हर मंच पर मुखर और प्रभावी है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 में भूटान, नेपाल, ऑस्ट्रेलिया और फिजी की संसदों को संबोधित किया। 2015 में उन्होंने ब्रिटेन, श्रीलंका, मंगोलिया, अफगानिस्तान और मॉरीशस की संसदों में भारत की बात रखी। इसके बाद युगांडा (2018), मालदीव (2019), अमेरिका (दो बार – 2016 और 2023) और गुयाना (2024) में भी उन्होंने अपने विचार रखे। इन भाषणों का स्वर वैश्विक था, परंतु आत्मा भारतीय रही। आत्मनिर्भरता, सहयोग, लोकतंत्र, जलवायु परिवर्तन और तकनीकी साझेदारी इनके केंद्र में रही।

विश्व राजनीति में भारत की नई छवि

ग्लोबल स्टेज पर भारत को मिल रही जगह से साबित होता है कि प्रधानमंत्री मोदी के ये संसदीय भाषण केवल औपचारिक अनुष्ठान नहीं रहे बल्कि ये नई वैश्विक कहानी का शिलान्यास साबित हुए। यह वजह है कि भारत अब एक ग्लोबल लीडर की भूमिका में देखा जाता है, न केवल आर्थिक शक्ति के रूप में, बल्कि नैतिक और सांस्कृतिक समृद्धता के जरिए भी भारत आज विश्व पटल पर अपनी अलग पहचान बना चुका है। इस पूरी उपलब्धि के पीछे एक गहरी रणनीति भी छुपी है भारत अब ‘न्यू साउथ’ का प्रतिनिधि बनकर उभर रहा है। वह विकासशील देशों की आवाज बन रहा है जो वर्षों से हाशिये पर थे। प्रधानमंत्री मोदी इस आवाज को दुनिया तक तक पहुंचा रहे हैं। 

-(वरिष्ठ पत्रकार अमित शर्मा की राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय, राजनीतिक, आध्यात्मिक और सामाजिक मुद्दों पर गहरी पकड़ है)