Author : Amit Sharma

कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने गुरुवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस कर मतदाता सूची में कथित गड़बड़ी का आरोप लगाया। जाने-अनजाने राहुल गांधी के आरोप विपक्ष के भीतर भ्रम और विरोधाभास का सबसे बड़ा सबूत दे गए। अब यह कहना आसान होगा कि विपक्ष SIR का विरोध सिर्फ राजनीतिक कारणों से कर रहा है, न कि मतदाता सूची की सटीकता के वास्तविक हित में। क्योंकि जिस तर्क के सहारे राहुल गांधी ने चुनाव आयोग पर हमला बोला, वही अप्रत्यक्ष रूप से बिहार में चल रही Special Intensive Revision (SIR) प्रक्रिया की प्रासंगिकता को और मजबूत करता है, जिसका वे और उनकी पार्टी खुलेआम विरोध कर रहे हैं। SIR वही प्रक्रिया है, जिसका मकसद है मतदाता सूची में गड़बड़ियों को सुधारना यानी वही काम, जिसकी जरूरत राहुल गांधी ने खुद अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में सिद्ध कर दी। राहुल गांधी के आरोप और एसआईआर की जरूरत दोनों के सिरे एक ही उद्देश्य से कैसे जुड़े हैं इसे समझने से पहले यह समझना भी जरूरी है कि SIR क्या है और यह मतदाता सूची को दुरुस्त करने के लिए क्यों जरूरी है?
SIR क्या है और क्यों है जरूरी?
विशेष गहन पुनरीक्षण यानी (SIR) बिहार में विधानसभा चुनाव से पहले चलाया जा रहा एक विशेष मतदाता सूची पुनरीक्षण अभियान है। इसका उद्देश्य है मृत, स्थानांतरित और डुप्लीकेट मतदाताओं के नाम सूची से हटाना और सही पते-पहचान के आधार पर वोटर लिस्ट को अपडेट करना। चुनाव आयोग के अनुसार अब तक 98% से अधिक मतदाताओं का सत्यापन हो चुका है जिसमें 20 लाख मृतक नाम, 28 लाख स्थानांतरित प्रविष्टियां और 7 लाख डुप्लीकेट हटाए जा चुके हैं। साथ ही 1.5 लाख बूथ-लेवल एजेंटों को ड्राफ्ट सूची की प्रति सौंप दी गई है। सुप्रीम कोर्ट ने भी SIR को आगे बढ़ाने की अनुमति दी। दिलचस्प तथ्य यह भी है कि SIR के ड्राफ्ट प्रकाशन के एक सप्ताह बाद तक किसी भी राजनीतिक दल ने औपचारिक आपत्ति दर्ज नहीं कराई केवल कुछ हजार आम नागरिकों से दावे-आपत्तियां आईं।
विपक्ष के आरोपों की निकली हवा
अब आते हैं कांग्रेस सहित INDIA गठबंधन के SIR विरोध व राहुल गांधी के ताजा बयान के कनेक्शन पर। जहां एक तरफ विपक्ष बिहार में SIR का विरोध कर रहा है वहीं दूसरी तरफ राहुल गांधी प्रेस कॉन्फ्रेंस कर मतदाता सूची में कथित गड़बड़ी की बात कहते हैं, जिससे उल्टा उन्हीं के ऐजेंडे, ‘SIR का विरोध’ को धक्का लगता है। क्योंकि बिहार में चुनाव आयोग SIR के जरिए यही काम तो कर रहा है जो राहुल गांधी कह रहे हैं। एसआईआर में मतादाता सूची की गड़बड़ियों को ही सुधारा जाना है और राहुल गांधी भी यहां मतदाता सूची में गड़बड़ी की ही बात कर रहे थे। ये अजीब विरोधाभास है कि एक तरफ राहुल गांधी बिहार में एसआईआर का विरोध करते हैं दूसरी तरफ एक घंटे प्रेस कॉन्फ्रेंस कर वोटर लिस्ट में गड़बड़ी का आरोप लगाते हैं। कुल मिलाकर राहुल गांधी गए तो थे चुनाव आयोग का विरोध करने लेकिन कहीं न कहीं वोटर लिस्ट में गड़बड़ी की बात बोलकर एसआईआर की जरूरत को और बल दे गए। राहुल गांधी बार-बार, नए-नए तरीके ढूंढ़ देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था पर सवाल उठा रहे हैं लेकिन इस बार उन्होंने सेल्फ गोल कर लिया है।
कैसे आएगी वोटर लिस्ट की सटीकता?
करीब एक घंटे लंबी चली इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में राहुल गांधी ने दावा किया कि कर्नाटक के महादेवपुरा विधानसभा क्षेत्र में एक लाख से अधिक फर्जी वोटरों का पता चला है जिनमें डुप्लीकेट नाम, गलत पते, bulk voter entries और फर्जी फोटो शामिल हैं, यहीं से कहानी में आता है मोड़। राहुल गांधी का आरोप वोटर लिस्ट की सटीकता पर सवाल उठाता है यानी वही मुद्दा, जिसे SIR संबोधित कर रहा है। एक तरफ वे बिहार में SIR को ‘मतदाता दमन’ की रणनीति बताते हैं, दूसरी तरफ वोटर लिस्ट में गड़बड़ी का आरोप लगाकर यह स्वीकार कर लेते हैं कि ऐसी सफाई और पुनरीक्षण प्रक्रिया जरूरी है। यह एक राजनीतिक सेल्फ गोल जैसा है, जहां विरोध का तीर घूमकर अपने ही पाले में जा लगा।
आयोग ने दावों को किया खारिज
कर्नाटक के अलावा राहुल गांधी ने दावा किया था कि दो व्यक्ति, आदित्य श्रीवास्तव और विशाल सिंह के नाम वोटर लिस्ट में एक से अधिक जगह हैं। आयोग ने इन आरोपों का खंडन कर दिया है। उत्तर प्रदेश राज्य निर्वाचन आयोग ने इस दावे को संज्ञान में लेकर निष्पक्ष जांच की और सच्चाई कांग्रेस नेता के दावे से उलट निकली। निर्वाचन आयोग के अनुसार जब voters.eci.gov.in पर दोनों नाम खोजे गए तो आदित्य श्रीवास्तव का विवरण केवल बैंगलोर के बूथ 458 पर पाया गया। लखनऊ पूर्व की वोट रॉल में उनका नाम है ही नहीं। विशाल सिंह का नाम केवल बैंगलोर के बूथ 513 पर ही मिला; वाराणसी कैन्ट (बूथ 82) की सूची से उनका नाम भी गायब था। इन तथ्यों के आधार पर स्पष्ट है कि उत्तर प्रदेश के संदर्भ में राहुल गांधी जो तथ्य प्रस्तुत कर रहे थे, वे सत्य पर आधारित नहीं थे।
लोकतांत्रिक सच्चाई और तर्क
अब यहां समझना जरूरी है कि राहुल जो कह रहे हैं उससे SIR की जरूरत और पुख्ता कैसे होती है। दरअसल SIR के तहत बूथ-लेवल पर मतदाता सूची की जांच होती है, फर्जी और गलत प्रविष्टियां हटाई जाती हैं और नए पात्र मतदाताओं को जोड़ा जाता है। राहुल गांधी का आरोप भी इसी पर केंद्रित है कि फर्जी नाम हटने चाहिए, डुप्लीकेट प्रविष्टियों को चिन्हित किया जाना चाहिए और डेटा पारदर्शी होना चाहिए। मतलब, जिस समस्या का समाधान SIR कर रहा है, उसी समस्या को लेकर राहुल गांधी ने चुनाव आयोग पर हमला किया। अब इनकी कौन सी बात सच मानी जाए?
इसमें किसी को शक नहीं होना चाहिए कि लोकतंत्र में मतदाता सूची की सटीकता, चुनाव की निष्पक्षता की रीढ़ होती है। फर्जी, मृत या डुप्लीकेट नामों का होना, चुनावी प्रक्रिया की पारदर्शिता पर सीधा प्रहार है। इसलिए अगर विपक्ष को वाकई इस समस्या से परेशानी है तो किसी भी राजनीतिक मतभेद से ऊपर उठकर ऐसी किसी भी प्रक्रिया का समर्थन करना चाहिए, जो सूची को साफ-सुथरा बनाने का काम करती हो।
-(वरिष्ठ पत्रकार अमित शर्मा की राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय, राजनीतिक, आध्यात्मिक और सामाजिक मुद्दों पर गहरी पकड़ है। वर्तमान में वे प्रसार भारती न्यूज सर्विस के साथ जुड़े हैं।)
