
मेड इन इंडिया लेबल योजना भारत सरकार की एक ऐसी पहल है, जो भारत में निर्मित उत्पादों के लिए एक ब्रांड प्रतिष्ठा, मज़बूत पहचान और व्यापक पहुंच के माध्यम से विनिर्माण उद्योग को सहायता प्रदान करती है। मेड इन इंडिया लेबल का उद्देश्य भारतीय उत्पादों की गुणवत्ता को प्रदर्शित करना और विभिन्न क्षेत्रों में उच्च रेटिंग प्राप्त करना है। योजना का लक्ष्य भारत में निर्मित उत्पादों की प्रतिष्ठा को मज़बूत करना है। यह भारत में निर्मित और/या स्थानीय कच्चे माल से तैयार उत्पादों की प्रामाणिकता की गारंटी भी देता है। इस योजना की सफलता के लिए, सरकार ने तीन वर्षों के लिए 995 करोड़ रुपए का प्रस्ताव रखा है और अनुमान है कि यह योजना आने वाले वर्षों में आत्मनिर्भर होगी।
योजना की आवश्यकता
दरअसल, जब विश्व कोविड-19 से जूझ रही थी और बंद अंतरराष्ट्रीय सीमाओं से उत्पन्न चुनौतियों का सामना कर रहा था, भारत ने आत्मनिर्भर बनने के अवसर का लाभ उठाया। मई, 2020 में आत्मनिर्भर भारत योजना शुरू की गई। इसका उद्देश्य आत्मनिर्भरता को विकास और राष्ट्रीय शक्ति का आधार बनाना था ताकि भारत विश्व में अपनी पहचान बना सके और मानवता की भलाई में और अधिक योगदान दे सके।
मिशन का एक प्रमुख आधार, सरकार के 2014 में शुरू की गई ‘मेक इन इंडिया’ पहल
आत्मनिर्भरता के इस मिशन का एक प्रमुख आधार सरकार के 2014 में शुरू की गई ‘मेक इन इंडिया’ पहल है। इस पहल का उद्देश्य निवेश को सुगम बनाना, नवाचार को बढ़ावा देना, सर्वश्रेष्ठ बुनियादी ढांचे का निर्माण करना और भारत को विनिर्माण, डिजाइन और नवाचार का केंद्र बनाना है। वहीं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आत्मनिर्भर भारत और “वोकल फॉर लोकल” पर बल देने से विनिर्माण क्षेत्र घरेलू और वैश्विक स्तर पर सुर्खियों में आ गया है।
लेबल पर एक क्यूआर कोड और एक लोगो प्रदर्शित होता है
यह एक स्वैच्छिक प्रमाणन योजना है जो निर्माताओं को यह प्रदर्शित करने में मदद करती है कि उनके उत्पाद भारत में निर्मित हैं और उच्च गुणवत्ता के हैं। लेबल पर एक क्यूआर कोड और एक लोगो प्रदर्शित होता है, जिसमें निर्माण स्थल, लेबल की वैधता और उत्पाद से संबंधित अन्य जानकारी होती है। इस पहल का नेतृत्व उद्योग एवं आंतरिक व्यापार संवर्धन विभाग (डीपीआईआईटी) द्वारा किया जा रहा है। भारतीय गुणवत्ता परिषद और इंडिया ब्रांड इक्विटी फाउंडेशन, सलाहकार के रूप में डीपीआईआईटी के साथ सक्रिय रूप से सहयोग कर रहे हैं।
भारत का विकास का दृष्टिकोण एक स्मार्ट राष्ट्र बनना है
गौरतलब हो, भारत के विकास का दृष्टिकोण एक स्मार्ट राष्ट्र बनना है। स्मार्ट राष्ट्र को स्थिरता, विनिर्माण क्षमता, आत्मनिर्भरता, रेटिंग और प्रौद्योगिकी से युक्त देश के रूप में परिभाषित किया गया है। भारतीय उत्पादों की गुणवत्ता प्रदर्शित करने और विभिन्न क्षेत्रों में उच्च रेटिंग प्राप्त करने के लिए मेड इन इंडिया लेबल अत्यंत महत्वपूर्ण है।
वैश्विक गुणवत्ता अवसंरचना सूचकांक (जीक्यूआईआई) 2023, गुणवत्तापूर्ण अवसंरचना विकास के आधार पर देशों को रैंक करता है और विश्व भर में माप-पद्धति, मानकीकरण और मान्यता प्रणाली पर आंकड़े प्रदान करता है। इस सूचकांक में भारत को 10वें स्थान पर रखा गया है, जो दर्शाता है कि भारतीय मान्यता प्रणाली मजबूत है और “मेड इन इंडिया” लेबल द्वारा अपनाए जाने वाले मानक उत्पादों की गुणवत्ता और विश्वसनीयता को उजागर करेंगे।
योजना के उद्देश्य
- योजना के उद्देश्य इसके मूल लक्ष्य और भारत के विनिर्माण व्यवस्था के लिए इसके द्वारा प्राप्त किए जाने वाले लक्ष्यों को परिभाषित करते हैं। ये घरेलू उद्योगों को मज़बूत करने, उपभोक्ता विश्वास और भारत की वैश्विक प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ाने के लिए मार्गदर्शक स्तंभ के रूप में कार्य करते हैं।
- यह योजना उत्पाद को उसके मूल के आधार पर पहचान प्रदान करती है।
- यह भारतीय मूल के उत्पादों को योग्य बनाने और ब्रांडिंग करने के लिए एक तंत्र विकसित करती है।
- यह घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में भारतीय मूल के उत्पादों को मान्यता दिलाने में भी सहायता करती है।
- मेड इन इंडिया लेबल प्रतिस्पर्धी बाज़ार में उत्पाद की स्थिति को मज़बूत करता है क्योंकि यह लेबल प्रामाणिकता, गुणवत्ता और अन्य उत्पादों से अलग होने का संकेत देता है।
योजना की सफलता का रोडमैप
यह रोडमैप, गुणवत्ता मानक निर्धारित करने से लेकर क्यूआर कोड के माध्यम से डिजिटल सत्यापन को एकीकृत करने तक, मेड इन इंडिया लेबल योजना के कार्यान्वयन का एक स्पष्ट मार्ग प्रस्तुत करता है। यह उद्योगों में सुचारू रूप से अपनाने और एक मजबूत तथा पहचान योग्य राष्ट्रीय ब्रांड के निर्माण को सुनिश्चित करने के लिए चरणबद्ध कार्यों की रूपरेखा प्रस्तुत करता है। यह योजना भारतीय विनिर्माण क्षेत्र पर केंद्रित है जिसमें बड़े पैमाने के उद्यम तथा सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (एमएसएमई) भी शामिल हैं। खेती, कृषि, मत्स्य पालन, जलीय कृषि, बागवानी और संबद्ध गतिविधियों में लगे उद्यमियों को भी इस योजना में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा।
इस योजना के घटकों में कार्यक्रम टीम, प्रौद्योगिकी लागत, समीक्षा और निवारण तंत्र, कानूनी परामर्श, विपणन और आईईसी रणनीति और रैंडम क्वालिटी अनुरूपता मूल्यांकन जांच शामिल हैं।
पायलट सेक्टर का चयन- पायलट सेक्टर का चयन योजना की सफलता की दिशा में पहला कदम है। पायलट सेक्टर का चयन वर्तमान गुणवत्ता मानकों, स्थानीय व्यापार में मूल्यवर्धन और उद्योग परामर्श के आधार पर किया जाएगा। यह चयन परिभाषाएं और मानदंड विकसित करने, समस्याओं का समाधान करने, विश्लेषण को सुव्यवस्थित करने और आगे के चरणों के लिए एक मज़बूत आधार तैयार करने में सहायक होगा।
न्यूनतम मूल्य संवर्धन मानदंड- मूल्य संवर्धन के लिए निर्धारित मानदंड 50 प्रतिशत है, हालांकि, उद्योग परामर्श के आधार पर इसमें अपवाद भी देखा जाता है।
चरणबद्ध दृष्टिकोण- पायलट सेक्टर में चयनित उत्पादों की पहचान की जाएगी, उनकी मूल्य श्रृंखला का विश्लेषण किया जाएगा और उसके आधार पर अंतिम उत्पादों तथा उप-घटकों को मेड इन इंडिया लेबल के लिए मान्यता दी जाएगी।
एंटरप्राइज़ ऑनबोर्डिंग- प्रमाणपत्र की आवश्यकता का अनुपालन करने वाले चयनित उद्यमों को मेड इन इंडिया (एमआईआई) पोर्टल पर ऑनबोर्ड किया जाएगा जिससे एक सहज ऑनबोर्डिंग अनुभव सुनिश्चित होगा।
लेबल प्रमाणन- गुणवत्ता मानकों और स्थानीय मूल्य संवर्धन मानदंडों को पूरा करने वाले चयनित उद्यमों को लेबल प्रदान किया जाएगा।
मेड इन इंडिया लेबल, विभिन्न क्षेत्रों में करा रहा अपनी उपस्थिति दर्ज
देश भर में गुणवत्ता और गौरव का प्रतीक, मेड इन इंडिया लेबल, विभिन्न क्षेत्रों में अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहा है, जो भारतीय नवाचार, कौशल, शिल्प कौशल और ग्राहकों के बीच विश्वास निर्माण को दर्शाता है। वर्ष 2023 में, इस्पात उत्पादों के लिए मेड इन इंडिया ब्रांडिंग हेतु एक परियोजना शुरू की गई, जब दो एकीकृत इस्पात उत्पादकों ने इस्पात उत्पादों के लिए मेड इन इंडिया ब्रांडिंग को चुना। मेड इन इंडिया ब्रांडिंग से निर्माताओं को लाभ होता है, क्योंकि यह उपभोक्ताओं को उत्पाद के विवरण जानने में सक्षम बनाता है, उत्पाद की गुणवत्ता की विश्वसनीयता बनाए रखता है और निर्माता तथा इस्पात मिल मालिक अपनी संस्थाओं को अंतर्राष्ट्रीय बाजार में ब्रांड इंडिया के तहत स्थापित कर सकते हैं ताकि स्वदेशी रूप से निर्मित इस्पात उत्पादों को पसंद करने वाले ग्राहकों को आकर्षित किया जा सके।
वहीं, वर्ष 2024 में, भारतीय गुणवत्ता परिषद (क्यूसीआई) और खादी ग्रामोद्योग एवं उद्योग आयोग (केवीआईसी) के बीच एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए हैं, जिसमें मेड इन इंडिया लेबल ढांचे का विकास शामिल है। इससे पता चलता है कि सरकार एमएसएमई में भी गुणवत्ता मानकों और राष्ट्रीय ब्रांडिंग को एकीकृत कर रही है, ताकि छोटे व्यवसायों को मददन पहुंचाने वाले ये उद्यम अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी विकसित हो सकें।
इसी तरह, केंद्र ने व्यापार में सुगमता लाने और इलेक्ट्रॉनिक उद्योगों के लिए अनुपालन बोझ को कम करने के लिए कानूनी माप विज्ञान (पैकेज्ड कमोडिटीज) नियम 2011 में संशोधन किया। संशोधनों के तहत विभाग ने क्यूआर कोड के माध्यम से अनिवार्य घोषणाओं की घोषणा की, जिसे स्कैन करके निर्माता या पैकर या आयातक का पता, वस्तु का सामान्य या सामान्य नाम, वस्तु का आकार और आयाम और टेलीफोन नंबर और ई-मेल पते को छोड़कर ग्राहक सेवा विवरण जैसी जानकारी देखी जा सकती है।
दरअसल, मेड इन इंडिया योजना, आत्मनिर्भर भारत योजना और मेक इन इंडिया पहल के बीच एक कड़ी का काम करती है। भारतीय उत्पादों को एक विशिष्ट पहचान और वैश्विक उपलब्धता प्रदान करके, यह न केवल घरेलू उद्योगों को मज़बूत करती है, बल्कि स्थानीय स्तर पर निर्मित वस्तुओं की गुणवत्ता और प्रामाणिकता में उपभोक्ताओं का विश्वास भी बढ़ाती है।
