Author : Nitendra Singh

हाल ही में मध्य प्रदेश में बच्चों की मौत की घटनाओं को खांसी की दवाओं के सेवन से जोड़ने वाली रिपोर्टों के बाद केंद्र और राज्य स्तर पर व्यापक जाँच की गई। राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र (NCDC), राष्ट्रीय विषाणु विज्ञान संस्थान (NIV), केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (CDSCO) सहित विशेषज्ञ संस्थानों की संयुक्त टीम ने प्रभावित क्षेत्रों का दौरा कर खांसी की दवाओं सहित कई नमूने एकत्र किए।
जांच में यह स्पष्ट हुआ कि किसी भी नमूने में डायथिलीन ग्लाइकॉल (DEG) या एथिलीन ग्लाइकॉल (EG) नहीं पाया गया। ये दोनों तत्व गंभीर किडनी क्षति के लिए जिम्मेदार माने जाते हैं। मध्य प्रदेश राज्य खाद्य एवं औषधि प्रशासन (SFDA) ने भी अपने स्तर पर तीन नमूनों की जांच की और DEG/EG की अनुपस्थिति की पुष्टि की।
वहीं, NIV पुणे द्वारा किए गए परीक्षण में रक्त और CSF नमूनों की जांच में एक मामले में लेप्टोस्पायरोसिस संक्रमण सामने आया है। इसके साथ ही पानी, मच्छर वाहक और श्वसन संबंधी नमूनों की जांच भी जारी है, जिसमें NEERI, NIV पुणे और अन्य संस्थान शामिल हैं। एक बहु-विषयक टीम सभी संभावित कारणों की गहन जाँच कर रही है। इसी बीच राजस्थान से आई रिपोर्टों पर भी स्पष्ट किया गया है कि वहां बच्चों की मौत से जुड़ा खांसी की दवा का उत्पाद प्रोपलीन ग्लाइकॉल रहित था और DEG/EG का संभावित स्रोत नहीं है। संबंधित दवा डेक्स्ट्रोमेथॉर्फन-आधारित फार्मूलेशन है, जिसका बच्चों में उपयोग अनुशंसित नहीं है।
केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के स्वास्थ्य सेवाएं महानिदेशालय (DGHS) ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को बच्चों में खांसी की दवाओं के तर्कसंगत उपयोग पर विशेष परामर्श जारी किया है।
