बिहार विधानसभा चुनाव 2025 : गठबंधनों के रण में विकास और विश्वास की जंग ; 6 व 11 नवंबर को मतदान, 14 नवंबर को नतीजों का ऐलान

Kanishk Mishra

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 : गठबंधनों के रण में विकास और विश्वास की जंग ; 6 व 11 नवंबर को मतदान, 14 नवंबर को नतीजों का ऐलान

भारत निर्वाचन आयोग ने आज सोमवार को बिहार की 243 विधानसभा सीटों (38 SC, 2 ST आरक्षित) के लिए तारीखों का ऐलान कर दिया है, जिसने राज्य की सियासत को उबाल पर ला दिया है। बिहार में दो चरणों में विधानसभा चुनाव होने जा रहा है। पहले चरण में 121 सीटों पर 6 नवंबर को एवं दूसरे चरण में 122 सीटों पर 11 नवंबर को मतदान होगा। वहीं 14 नवंबर चुनावी नतीजों का दिन होगा। 3.92 करोड़ पुरूष एवं 3.50 करोड़ महिला मतदाताओं को मिलाकर कुल 7.43 करोड़ मतदाताओं के बीच, यह चुनाव राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) और महागठबंधन के बीच कांटे की टक्कर का मैदान है। जन सुराज और एआईएमआईएम जैसे खिलाड़ी भी वोट की गणित को और जटिल बनाएंगे। 22 नवंबर 2025 को वर्तमान विधानसभा का कार्यकाल समाप्त होने से पहले बिहार एक बार फिर भारतीय लोकतंत्र की जीवंतता का प्रदर्शन करेगा। 1951 से 2020 तक 17 चुनावों का इतिहास और हाल के गठबंधन बदलावों ने इस रण को और भी रोमांचक बना दिया है।

अतीत के नतीजे : गठबंधनों की जीत का इतिहास

बिहार की सियासत में गठबंधन हमेशा निर्णायक रहे हैं। 2010 के विधानसभा चुनाव में एनडीए ने शानदार प्रदर्शन किया, जिसमें भाजपा ने 91 और जद(यू) ने 115 सीटें जीतीं, जबकि राजद को 22 और कांग्रेस को मात्र 4 सीटें मिलीं। कुल 5.51 करोड़ मतदाताओं में 52.67% ने मतदान किया। 2015 में गठबंधन समीकरण बदले-जद(यू) ने राजद और कांग्रेस के साथ महागठबंधन बनाया, जिसने 178 सीटें (राजद 80, जद(यू) 71, कांग्रेस 27) हासिल कीं, जबकि भाजपा 53 सीटों पर सिमट गई। मतदान 56.66% रहा, जिसमें 6.70 करोड़ मतदाताओं ने हिस्सा लिया। 2020 में जद(यू) फिर एनडीए में लौटा, और गठबंधन ने कांटे की टक्कर में जीत हासिल की-राजद 75 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनी, लेकिन भाजपा (74), जद(यू) (43) ने सहयोगियों के साथ एनडीए ने सरकार बनाई। 7.36 करोड़ मतदाताओं में 56.93% ने वोट डाला। वहीं 2024 के लोकसभा चुनाव में एनडीए ने 40 में से 30 सीटें जीतीं (भाजपा और जद(यू) 12-12, लोजपा-रामविलास 5, हम-1), जबकि महागठबंधन को 9 सीटें (राजद 4, कांग्रेस 3, सीपीआई-माले 2) मिलीं। एक सीट निर्दलीय के खाते में गई। 2022 में नीतीश के महागठबंधन में जाने और 2024 में एनडीए में वापसी ने सियासी अस्थिरता को उजागर किया, मगर गठबंधनों की ताकत अब भी नतीजों की कुंजी है।

महिला मतदाता : बिहार की ‘किंगमेकर’

बिहार में महिला मतदाता नतीजों को पलटने की ताकत रखती हैं। पिछले तीन विधानसभा चुनावों में महिलाओं ने पुरुषों से अधिक मतदान किया। 2020 में 3.48 करोड़ महिला मतदाताओं में 59.69% ने वोट डाला (पुरुष 54.45%), 2015 में 3.12 करोड़ में 60.48% (पुरुष 53.32%), और 2010 में 2.54 करोड़ में 54.49% (पुरुष 51.12%)। यह ट्रेंड दिखाता है कि महिलाएं बिहार की सियासत में निर्णायक हैं। एनडीए केंद्र एवं राज्य सरकार की महिला केंद्रित योजनाओं से महिला वोटरों को साध रहा है। इन नीतियों ने ग्रामीण महिलाओं, खासकर EBC और दलित समुदायों, में गहरी पैठ बनाई है। दूसरी ओर, महागठबंधन तेजस्वी यादव के नेतृत्व में रोजगार और सामाजिक न्याय के वादों से युवा और शहरी महिलाओं को लुभाने की कोशिश में है। दोनों गठबंधन जानते हैं कि 7.43 करोड़ मतदाताओं में महिलाओं की 47 फीसदी से ऊपर की हिस्सेदारी नतीजों का रुख तय कर सकती है।

प्रमुख मुद्दे और गठबंधन की रणनीति : जटिल समीकरणों का खेल

बिहार का यह चुनाव विकास, जातिगत समीकरण, और विश्वास के त्रिकोण पर लड़ा जा रहा है। एनडीए ‘डबल इंजन’ सरकार के दम पर सड़क, बिजली, पानी और औद्योगिक निवेश को उपलब्धि बता रहा है, जबकि महागठबंधन इसे खोखला बताकर बेरोजगारी और प्रवासन पर हमला बोल रहा है। तेजस्वी का नौकरी-शिक्षा पर जोर युवाओं को आकर्षित कर रहा है, मगर एनडीए की कल्याणकारी योजनाएं ग्रामीण एवं शहरी दोनों वोटरों में गहरी पैठ रखती हैं। एनडीए (भाजपा, जद(यू), लोजपा-रामविलास, हम-एस) नीतीश कुमार के ‘सुशासन’ और पीएम नरेंद्र मोदी की राष्ट्रीय अपील के दम पर मैदान में है। भाजपा की ताकत उसका संगठन, हिंदुत्व की अपील और केंद्र की योजनाएं (उज्ज्वला, आयुष्मान भारत, बिहार को हालिया विकास सौगात) हैं। जद(यू) नीतीश के लव-कुश (कुर्मी-कोइरी), EBC, और महादलित समीकरणों पर भरोसा कर रहा है। लोजपा-रामविलास का पासवान वोट बैंक और हम(एस) का दलित आधार गठबंधन को मजबूती देता है। एनडीए के वादों में ब्याज मुक्त छात्र ऋण, कौशल विकास, पेंशन, बिजली सब्सिडी, और ‘बिहार औद्योगिक निवेश प्रोत्साहन पैकेज 2025’ शामिल हैं। महागठबंधन (राजद, कांग्रेस, वाम, वीआईपी) तेजस्वी यादव की युवा ऊर्जा और मुस्लिम-यादव (MY) वोट बैंक पर टिका है। राजद का ‘अति पिछड़ा न्याय संकल्प’ (उच्च आरक्षण, ठेकों में हिस्सेदारी, नियामक प्राधिकरण) EBC और पिछड़े वर्गों को जोड़ने की कोशिश है। कांग्रेस राहुल गांधी के अभियान से बेरोजगारी और शिक्षा पर फोकस कर रही है, मगर उसका कमजोर संगठन और सीमित प्रभाव नुकसान पहुंचा रहा है। वाम दल और वीआईपी सामाजिक न्याय के मुद्दों को उठा रहे हैं, लेकिन नेतृत्व की अस्पष्टता (तेजस्वी को सीएम चेहरा बनाने पर कांग्रेस की अनिच्छा) और ठोस वैकल्पिक एजेंडा की कमी कमजोरी है। राजद को ‘जंगलराज’ और भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना करना पड़ रहा है, जबकि गठबंधन में सीट बंटवारे की जटिलताएं और जन सुराज से वोट कटौती का खतरा है।

जटिल और रोमांचक रण

बिहार का यह रण जटिल और रोमांचक है। 2022-2024 के नीतीश के गठबंधन बदलावों ने अवसरवाद की छवि बनाई, मगर उनकी अनुभवी छवि और मोदी की राष्ट्रीय अपील एनडीए को स्थिरता का प्रतीक बनाती है। महागठबंधन तेजस्वी की ऊर्जा और सामाजिक न्याय के मुद्दों से सत्ता विरोधी लहर भुनाने की कोशिश में है, लेकिन आंतरिक असमंजस और कमजोर संगठन इसकी राह में रोड़ा हैं। सीमांचल, SIR, और कानून व्यवस्था जैसे मुद्दे माहौल को ध्रुवीकृत कर सकते हैं। जन सुराज और एआईएमआईएम की स्वतंत्र दावेदारी वोट बांटकर नतीजों को अप्रत्याशित बना सकती है। बिहार की जनता विशेषकर महिलाएं,जाति, विकास और विश्वास के इस त्रिकोण में अपना फैसला सुनाएगी, जो न केवल राज्य बल्कि राष्ट्रीय सियासत को भी प्रभावित करेगा।